‘भोर का तारा’ का कथासार अपने शब्दों में लिखिये

प्र. ‘भोर का तारा’ का कथासार अपने शब्दों में लिखिये ।

भोर का तारा'
भोर का तारा’

उ. लगभग पाँचवी शताब्दी में उज्जयिनी साम्राज्य के राजकवि शेखर की कथा इस एकांकी में आई है। शेखर कोमल भावनाओं की प्रेम कविताएँ लिखने वाला नवयुवक है जिसका एक मित्र माधव राज दरबार के निकट है। शेखर उज्जयिनी की एक युवती छाया से प्रेम करता है और उसके लिए गीत भी लिखता है। एक दिन माधव बताता है कि सम्राट शेखर को राजकवि बनाने वाले हैं क्योंकि उसका एक गीत सम्राट को बहुत पसंद आ गया है। इधर सूचना यह भी है कि छाया के भाई देवदत्त को सम्राट ने तक्षशिला का क्षत्रप बना दिया है।

अब छाया का भाई देवदत्त अपने नए दायित्व के लिए उज्जयिनी से बाहर है और माधव भी उसके साथ चला गया है। छाया और शेखर को निकट आने का अवसर मिलता है। शेखर छाया को बताता है कि उसे आकस्मिक उपहार देने के लिए उससे छिप छिपकर एक काव्य ‘भोर का तारा’ की रचना भी की है। छाया भी इस काव्य को देखकर रोमांचित है।

मनोरम कल्पनाओं के इस सुंदर संसार में अचानक एक तूफान आ जाता है। माधव आकर सूचना देता है कि भारत के पश्चिम प्रांतों पर हूणों का आक्रमण हो गया है और पंचनद (पंजाब) हूणों के आतंक व हिंसा से पीड़ित है। उसके इस समाचार से उज्जयिनी की जनता में भी हलचल मच जाती है। माधव इन्हें यह भी बताता है कि छाया का भाई देवदत्त युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया है।

शेखर इस परिस्थिति में कल्पना और प्रणय की मनोभूमि से बाहर निकलता है। वह अपने मानसिक अवरोध को दूर करने के लिए बिना एक पल गँवाए भोर का तारा’ की पांडुलिपि को आग के हवाले कर देता है और जनता के साथ युद्ध के गीत गाने लगता है।

उसकी प्रेयसी छाया पांडुलिपि नष्ट हो जाने से व्यथित है और उसे लग रहा है कि उसका प्रभात समाप्त हो गया तब माधव कहता है, “छाया, मैंने तुम्हारा प्रभात नष्ट नहीं किया। प्रभात तो अब होगा । शेखर तो अब तक भोर का तारा था। अब वह प्रभात का सूर्य होगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top